श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 25: राजा पुरञ्जन के गुणों का वर्णन  »  श्लोक 42
 
 
श्लोक  4.25.42 
 
 
कस्या मनस्ते भुवि भोगिभोगयो:
स्त्रिया न सज्जेद्भुजयोर्महाभुज ।
योऽनाथवर्गाधिमलं घृणोद्धत
स्मितावलोकेन चरत्यपोहितुम् ॥ ४२ ॥
 
अनुवाद
 
  हे महाबाहु, इस संसार में ऐसा कौन होगा जो सर्प के शरीर जैसी तुम्हारी भुजाओं से आकर्षित न हो? तुम अपनी मोहक मुस्कान और अपनी छेड़छाड़ भरी दया से हम जैसी निराश्रित महिलाओं के दुख को दूर करते हो। हम सोचती हैं कि तुम केवल हमारे हित के लिए ही पृथ्वी पर विचरण करते हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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