श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 25: राजा पुरञ्जन के गुणों का वर्णन  »  श्लोक 41
 
 
श्लोक  4.25.41 
 
 
का नाम वीर विख्यातं वदान्यं प्रियदर्शनम् ।
न वृणीत प्रियं प्राप्तं माद‍ृशी त्वाद‍ृशं पतिम् ॥ ४१ ॥
 
अनुवाद
 
  हे वीर पुरुष, इस धरा पर ऐसी कौन सी नारी होगी जो तुम जैसे सर्वश्रेष्ठ पति को पाकर भी नकार देगी? तुम इतने ख्यातिप्राप्त, इतने उदार, इतने मनोहर और सुलभ हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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