श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 25: राजा पुरञ्जन के गुणों का वर्णन  »  श्लोक 40
 
 
श्लोक  4.25.40 
 
 
पितृदेवर्षिमर्त्यानां भूतानामात्मनश्च ह ।
क्षेम्यं वदन्ति शरणं भवेऽस्मिन् यद्गृहाश्रम: ॥ ४० ॥
 
अनुवाद
 
  उस स्त्री ने आगे कहा : अधिकारियों के अनुसार गृहस्थ जीवन न केवल अपने को बल्कि सभी पूर्वजों, देवताओं, ऋषियों, साधु-पुरुषों और अन्य सभी को अच्छा लगता है। इस प्रकार गृहस्थ जीवन अत्यंत उपयोगी है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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