श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 25: राजा पुरञ्जन के गुणों का वर्णन  »  श्लोक 39
 
 
श्लोक  4.25.39 
 
 
धर्मो ह्यत्रार्थकामौ च प्रजानन्दोऽमृतं यश: ।
लोका विशोका विरजा यान्न केवलिनो विदु: ॥ ३९ ॥
 
अनुवाद
 
  सुंदरी ने कहा: इस सांसारिक दुनिया में, गृहस्थ के जीवन में धर्म, धन, काम और पुत्र-पौत्र इत्यादि संतानें उत्पन्न करने का पूरा सुख है। इसके बाद, चाहें तो मोक्ष और सांसारिक यश भी प्राप्त किया जा सकता है। गृहस्थ ही यज्ञ के फल का रस ग्रहण कर सकता है, जिससे उसे श्रेष्ठ लोकों की प्राप्ति होती है। योगियों (यतियों) के लिए यह भौतिक सुख अपरिचित जैसा है। वे ऐसे सुख की कल्पना भी नहीं कर सकते।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.