श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 25: राजा पुरञ्जन के गुणों का वर्णन  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  4.25.37 
 
 
इमां त्वमधितिष्ठस्व पुरीं नवमुखीं विभो ।
मयोपनीतान् गृह्णान: कामभोगान् शतं समा: ॥ ३७ ॥
 
अनुवाद
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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