श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 25: राजा पुरञ्जन के गुणों का वर्णन  »  श्लोक 32
 
 
श्लोक  4.25.32 
 
 
नारद उवाच
इत्थं पुरञ्जनं नारी याचमानमधीरवत् ।
अभ्यनन्दत तं वीरं हसन्ती वीर मोहिता ॥ ३२ ॥
 
अनुवाद
 
  नारद ने आगे कहा : हे राजन्, जब राजा उस सुन्दरी का स्पर्श करने तथा उसका भोग करने के लिए अत्यधिक मोहित एवं अधीर हो गया, तब वह युवती भी राजा के शब्दों से आकर्षित हुई और हँसते हुए उसके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। अब तक उस युवती का राजा के प्रति आकर्षण जगजाहिर हो चुका था।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.