श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 25: राजा पुरञ्जन के गुणों का वर्णन  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  4.25.28 
 
 
त्वं ह्रीर्भवान्यस्यथ वाग्रमा पतिं
विचिन्वती किं मुनिवद्रहो वने ।
त्वदङ्‌घ्रिकामाप्तसमस्तकामं
क्‍व पद्मकोश: पतित: कराग्रात् ॥ २८ ॥
 
अनुवाद
 
  सुन्दर लड़की, तुम लक्ष्मी या शिव पत्नी भवानी या ब्रह्मा पत्नी सरस्वती जैसी दिख रही हो। तुम अवश्य ही इनमें से एक हो, लेकिन मैं तुमको इस वन में अकेले विचरण करते देख रहा हूँ। सच में, तुम संतों की तरह मौन हो। कहीं तुम अपने पति को खोज रही हो? तुम्हारा पति चाहे कोई भी क्यों न हो, लेकिन तुमको इस तरह खोजते देख उसे सारे ऐश्वर्य मिल जाएँगे। मुझे लगता है कि तुम लक्ष्मी हो, लेकिन तुम्हारे हाथ में कमल का फूल नहीं है, इसलिए मैं पूछ रहा हूँ कि तुमने उसे कहाँ फेंक दिया?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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