श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 25: राजा पुरञ्जन के गुणों का वर्णन  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  4.25.27 
 
 
क एतेऽनुपथा ये त एकादश महाभटा: ।
एता वा ललना: सुभ्रु कोऽयं तेऽहि: पुर:सर: ॥ २७ ॥
 
अनुवाद
 
  हे कमलनयनी, तुम्हारे साथ ये ग्यारह ताकतवर अंगरक्षक, ये दस खास नौकर, इन दस नौकरों के पीछे-पीछे चल रही ये औरतें, और तुम्हारे आगे-आगे ये सर्प कौन हैं?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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