श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 25: राजा पुरञ्जन के गुणों का वर्णन  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  4.25.24 
 
 
स्तनौ व्यञ्जितकैशोरौ समवृत्तौ निरन्तरौ ।
वस्त्रान्तेन निगूहन्तीं व्रीडया गजगामिनीम् ॥ २४ ॥
 
अनुवाद
 
  अपनी साड़ी के आँचल से स्त्री अपने गोल और अगल-बगल में लगे स्तनों को ढँकने की कोशिश कर रही थी। शर्मिंदगी से वो चलते हुए हाथी की तरह ही बार-बार अपने स्तनों को ढँकने की कोशिश कर रही थी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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