श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 25: राजा पुरञ्जन के गुणों का वर्णन  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  4.25.22 
 
 
सुनासां सुदतीं बालां सुकपोलां वराननाम् ।
समविन्यस्तकर्णाभ्यां बिभ्रतीं कुण्डलश्रियम् ॥ २२ ॥
 
अनुवाद
 
  उस स्त्री के नाक, दाँत और मस्तक सभी बहुत ही खूबसूरत थे। उसके कान भी उतने ही सुंदर थे और चमकीले कुंडल से सजे हुए थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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