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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति
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अध्याय 25: राजा पुरञ्जन के गुणों का वर्णन
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श्लोक 2
श्लोक
4.25.2
रुद्रगीतं भगवत: स्तोत्रं सर्वे प्रचेतस: ।
जपन्तस्ते तपस्तेपुर्वर्षाणामयुतं जले ॥ २ ॥
अनुवाद
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सभी प्रचेता कुमार दस हज़ार वर्षों तक जल के भीतर खड़े होकर शिवजी द्वारा दिए गए स्त्रोत का जाप करते रहे।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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