श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 25: राजा पुरञ्जन के गुणों का वर्णन  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  4.25.18 
 
 
हिमनिर्झरविप्रुष्मत्कुसुमाकरवायुना ।
चलत्प्रवालविटपनलिनीतटसम्पदि ॥ १८ ॥
 
अनुवाद
 
  झरनों से बहता जल हिमाच्छादित पर्वतों से आता था। वसंत की हवा इसे लेकर आती थी। झील के किनारे स्थित पेड़ों की टहनियाँ उस जल से भर जाती थीं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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