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अध्याय 25: राजा पुरञ्जन के गुणों का वर्णन
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श्लोक 18
श्लोक
4.25.18
हिमनिर्झरविप्रुष्मत्कुसुमाकरवायुना ।
चलत्प्रवालविटपनलिनीतटसम्पदि ॥ १८ ॥
अनुवाद
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झरनों से बहता जल हिमाच्छादित पर्वतों से आता था। वसंत की हवा इसे लेकर आती थी। झील के किनारे स्थित पेड़ों की टहनियाँ उस जल से भर जाती थीं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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