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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति
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अध्याय 25: राजा पुरञ्जन के गुणों का वर्णन
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श्लोक 16
श्लोक
4.25.16
सभाचत्वररथ्याभिराक्रीडायतनापणै: ।
चैत्यध्वजपताकाभिर्युक्तां विद्रुमवेदिभि: ॥ १६ ॥
अनुवाद
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उस नगर में ऐसे अनेक सभाभवन, चौराहे, सड़कें, खान-पान गृह, जुआ घर, बाज़ार, विश्रामालय, झंडे, पताकाएँ और सुंदर पार्क थे, जैसे वह इन सबसे घिरा हुआ हो।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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