श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 25: राजा पुरञ्जन के गुणों का वर्णन  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  4.25.15 
 
 
नीलस्फटिकवैदूर्यमुक्तामरकतारुणै: ।
क्लृप्तहर्म्यस्थलीं दीप्तां श्रिया भोगवतीमिव ॥ १५ ॥
 
अनुवाद
 
  उस शहर के घरों की फर्शें नीलम, स्फटिक, हीरे, मोती, पन्ना और लाल से बनी हुई थीं। घरों की रंगत के कारण वह शहर भोगवती नाम के स्वर्गीय नगर जैसा लग रहा था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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