प्राकारोपवनाट्टालपरिखैरक्षतोरणै: ।
स्वर्णरौप्यायसै: शृङ्गै: सङ्कुलां सर्वतो गृहै: ॥ १४ ॥
अनुवाद
वह नगर चारों ओर दीवारों और बगीचों से घिरा हुआ था, और उसके भीतर गुम्बद और मीनारें, नहरें, खिड़कियाँ और झरोखे थे। वहाँ के घर सोने, चाँदी और लोहे से बने गुम्बदों से सजे हुए थे।