श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 25: राजा पुरञ्जन के गुणों का वर्णन  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  4.25.14 
 
 
प्राकारोपवनाट्टालपरिखैरक्षतोरणै: ।
स्वर्णरौप्यायसै: श‍ृङ्गै: सङ्कुलां सर्वतो गृहै: ॥ १४ ॥
 
अनुवाद
 
  वह नगर चारों ओर दीवारों और बगीचों से घिरा हुआ था, और उसके भीतर गुम्बद और मीनारें, नहरें, खिड़कियाँ और झरोखे थे। वहाँ के घर सोने, चाँदी और लोहे से बने गुम्बदों से सजे हुए थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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