श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 24: शिवजी द्वारा की गई स्तुति का गान  »  श्लोक 73
 
 
श्लोक  4.24.73 
 
 
ते वयं नोदिता: सर्वे प्रजासर्गे प्रजेश्वरा: ।
अनेन ध्वस्ततमस: सिसृक्ष्मो विविधा: प्रजा: ॥ ७३ ॥
 
अनुवाद
 
  जब ब्रह्मा जी ने हम प्रजापतियों को प्रजा की उत्पत्ति करने का आदेश दिया, तब हमने परमपुरुष भगवान की स्तुति में इस स्तोत्र का जप किया। इस स्तोत्र के जप से हम समस्त अज्ञानता से पूर्णतया मुक्त हो गए। इस प्रकार हम विविध प्रकार के जीवों की उत्पत्ति कर पाए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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