हे मेरे प्रभु, आप अपनी शक्तियों के द्वारा सृष्टि कर लेने के बाद, सृष्टि में चार रूपों में प्रवेश करते हैं। आप जीवों के हृदय में निवास करते हैं और उन्हें तथा उनके इंद्रिय-भोगों को जानते हैं। इस भौतिक संसार का तथाकथित सुख ठीक वैसा ही है जैसा कि छत्ते में जमा होते ही मधुमक्खियों द्वारा उसका आनंद लिया जाता है।