जब भी सर्वोच्च शाही शक्ति, अंतर्धान को कर लेना होता, प्रजा को दंड देना होता या उस पर कठोर जुर्माना लगाना होता तो ऐसा करना उनके लिए कठिन होता था। इसलिए उन्होंने ऐसे कार्यों को करने से मना कर दिया और वे विभिन्न प्रकार के यज्ञों को संपन्न करने में व्यस्त हो गए।