श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 24: शिवजी द्वारा की गई स्तुति का गान  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  4.24.5 
 
 
अन्तर्धानो नभस्वत्यां हविर्धानमविन्दत ।
य इन्द्रमश्वहर्तारं विद्वानपि न जघ्निवान् ॥ ५ ॥
 
अनुवाद
 
  महाराज अन्तर्धान की नभस्वती नाम की एक अन्य पत्नी थी, जिससे उन्हें हविर्धान नाम का एक पुत्र हुआ। चूँकि महाराज अन्तर्धान अत्यंत उदार थे, इसलिए उन्होंने उस समय इंद्र को नहीं मारा जब वह उनके पिता के यज्ञ से उनका घोड़ा चुरा रहे थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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