अन्तर्धानगतिं शक्राल्लब्ध्वान्तर्धानसंज्ञित: ।
अपत्यत्रयमाधत्त शिखण्डिन्यां सुसम्मतम् ॥ ३ ॥
अनुवाद
पूर्वकाल में महाराजा विजिताश्व ने स्वर्ग के राजा इन्द्र को प्रसन्न किया और उनसे अंतर्धान की पदवी प्राप्त की। उनकी पत्नी का नाम शिखंडिनी था, जिनसे उन्हें तीन अच्छे पुत्र हुए।