श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 24: शिवजी द्वारा की गई स्तुति का गान  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  4.24.3 
 
 
अन्तर्धानगतिं शक्राल्लब्ध्वान्तर्धानसंज्ञित: ।
अपत्यत्रयमाधत्त शिखण्डिन्यां सुसम्मतम् ॥ ३ ॥
 
अनुवाद
 
  पूर्वकाल में महाराजा विजिताश्व ने स्वर्ग के राजा इन्द्र को प्रसन्न किया और उनसे अंतर्धान की पदवी प्राप्त की। उनकी पत्नी का नाम शिखंडिनी था, जिनसे उन्हें तीन अच्छे पुत्र हुए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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