श्रीरुद्र उवाच
यूयं वेदिषद: पुत्रा विदितं वश्चिकीर्षितम् ।
अनुग्रहाय भद्रं व एवं मे दर्शनं कृतम् ॥ २७ ॥
अनुवाद
शिवजी ने कहा: तुम सभी राजा प्राचीनबर्हि के पुत्र हो, तुम्हारा कल्याण हो। तुम जो करने जा रहे हो, वह मैं जानता हूँ। इसलिए मैंने तुम पर अपनी दया दिखाने के लिए ही दर्शन दिया है।