श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 24: शिवजी द्वारा की गई स्तुति का गान  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  4.24.15 
 
 
यदुक्तं पथि द‍ृष्टेन गिरिशेन प्रसीदता ।
तद्ध्यायन्तो जपन्तश्च पूजयन्तश्च संयता: ॥ १५ ॥
 
अनुवाद
 
  जब प्राचीनबर्हि के सभी पुत्र तपस्या के लिए घर त्यागकर चले गये तब उन्हें भगवान शिव मिले, जिन्होंने अत्यन्त अनुग्रह करके उन्हें परम सत्य का उपदेश दिया। प्राचीनबर्हि के सभी पुत्रों ने उनके उपदेशों का अत्यन्त सावधानी और तन्मयता के साथ जप तथा पूजन करते हुए चिन्तन किया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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