निरंतर भक्ति साधना करने से पृथु महाराज का मन पवित्र हो गया। फलस्वरूप, वे निरंतर भगवान के चरणों का ध्यान लगाने लगे। इससे वे पूर्ण रूप से वैरागी हो गए और परम ज्ञान प्राप्त कर सभी संशयों से परे हो गए। इस प्रकार वे मिथ्या अहंकार और जीवन की भौतिक धारणा से मुक्त हो गए।