श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 23: महाराज पृथु का भगवद्धाम गमन  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  4.23.11 
 
 
तस्यानया भगवत: परिकर्मशुद्ध
सत्त्वात्मनस्तदनुसंस्मरणानुपूर्त्या ।
ज्ञानं विरक्तिमदभून्निशितेन येन
चिच्छेद संशयपदं निजजीवकोशम् ॥ ११ ॥
 
अनुवाद
 
  निरंतर भक्ति साधना करने से पृथु महाराज का मन पवित्र हो गया। फलस्वरूप, वे निरंतर भगवान के चरणों का ध्यान लगाने लगे। इससे वे पूर्ण रूप से वैरागी हो गए और परम ज्ञान प्राप्त कर सभी संशयों से परे हो गए। इस प्रकार वे मिथ्या अहंकार और जीवन की भौतिक धारणा से मुक्त हो गए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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