शास्त्रेष्वियानेव सुनिश्चितो नृणां
क्षेमस्य सध्र्यग्विमृशेषु हेतु: ।
असङ्ग आत्मव्यतिरिक्त आत्मनि
दृढा रतिर्ब्रह्मणि निर्गुणे च या ॥ २१ ॥
अनुवाद
शास्त्रों में परिपूर्ण विचार-विमर्श के बाद यही निश्चय हुआ है कि मानव समाज के कल्याणार्थ परम लक्ष्य सांसारिक देह से अनासक्ति होना और प्रकृति के गुणों से परे दिव्य परमेश्वर के प्रति दृढ़ आसक्ति होना है।