सनत्कुमार उवाच
साधु पृष्टं महाराज सर्वभूतहितात्मना ।
भवता विदुषा चापि साधूनां मतिरीदृशी ॥ १८ ॥
अनुवाद
सनत्कुमार बोले : हे राजा पृथु, आपने मुझसे अति सुन्दर प्रश्न पूछा है। इस प्रकार के प्रश्न विशेष रूप से आप जैसे परोपकारी व्यक्ति द्वारा पूछे जाने पर समस्त जीवों के लिए अत्यन्त लाभकारी होते हैं। यद्यपि आप सब कुछ जानते हैं, किंतु आप ऐसे प्रश्न इसलिए पूछ रहे हैं क्योंकि यह साधु पुरुषों का आचरण है। ऐसी बुद्धि होना सर्वथा आपकी गरिमा के अनुरूप है।