स्वागतं वो द्विजश्रेष्ठा यद्व्रतानि मुमुक्षव: ।
चरन्ति श्रद्धया धीरा बाला एव बृहन्ति च ॥ १२ ॥
अनुवाद
महाराज पृथु ने चारों कुमारों को ब्रह्मणश्रेष्ठों के रूप में संबोधित करते हुए उनका स्वागत किया। उन्होंने कहा कि आपने जन्म से ही ब्रह्मचर्य व्रत का दृढ़तापूर्वक पालन किया है और यद्यपि आप मुक्ति के मार्ग में अनुभवी हैं, फिर भी आप अपने आप को छोटे बच्चों के समान ही बनाए हुए हैं।