भगवान् सर्वव्यापी हैं, परन्तु वे विभिन्न प्रकार के शरीरों में भी प्रकट होते हैं। ये शरीर भौतिक प्रकृति, समय, इच्छाओं और व्यावसायिक कर्तव्यों के संयोजन से उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार विभिन्न प्रकार की चेतनाएँ विकसित होती हैं, जिस प्रकार एक ही अग्नि विभिन्न आकार और प्रकार के काष्ठ खण्डों में विभिन्न तरीकों से प्रज्वलित होती है।