श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 21: महाराज पृथु द्वारा उपदेश  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  4.21.3 
 
 
सवृन्दै: कदलीस्तम्भै: पूगपोतै: परिष्कृतम् ।
तरुपल्लवमालाभि: सर्वत: समलङ्‌कृतम् ॥ ३ ॥
 
अनुवाद
 
  चौराहों पर फलों और फूलों के गुच्छे लटक रहे थे। साथ ही, केले के पेड़ों के खंभा और सुपारी की डालियाँ भी लगाई गई थीं। यह सारी सजावट मिलकर बहुत आकर्षक लग रही थी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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