वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् भागवतम
»
स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति
»
अध्याय 21: महाराज पृथु द्वारा उपदेश
»
श्लोक 3
श्लोक
4.21.3
सवृन्दै: कदलीस्तम्भै: पूगपोतै: परिष्कृतम् ।
तरुपल्लवमालाभि: सर्वत: समलङ्कृतम् ॥ ३ ॥
अनुवाद
play_arrowpause
चौराहों पर फलों और फूलों के गुच्छे लटक रहे थे। साथ ही, केले के पेड़ों के खंभा और सुपारी की डालियाँ भी लगाई गई थीं। यह सारी सजावट मिलकर बहुत आकर्षक लग रही थी।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.