य उद्धरेत्करं राजा प्रजा धर्मेष्वशिक्षयन् ।
प्रजानां शमलं भुङ्क्ते भगं च स्वं जहाति स: ॥ २४ ॥
अनुवाद
वह राजा जो अपनी प्रजा को वर्ण एवं आश्रम के अनुसार उनके कर्तव्यों की शिक्षा नहीं देता और केवल कर वसूलता है, उसे प्रजा के अपवित्र कार्यों के लिए दंड भोगना पड़ता है। ऐसी अवनति के साथ ही राजा अपनी सम्पत्ति भी खो देता है।