श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 21: महाराज पृथु द्वारा उपदेश  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  4.21.2 
 
 
चन्दनागुरुतोयार्द्ररथ्याचत्वरमार्गवत् ।
पुष्पाक्षतफलैस्तोक्‍मैर्लाजैरर्चिर्भिरर्चितम् ॥ २ ॥
 
अनुवाद
 
  पूरे शहर की गलियों, सड़कों और छोटे-छोटे पार्कों को चंदन और अरगजा के सुगंधित जल से सींचा गया था। साथ ही, हर जगह पूरे फलों, फूलों, भींगे हुए अनाजों, कई तरह के खनिजों और दीपों की सजावट से सजाया गया था। सारी शुभ वस्तुओं के नज़ारे दिख रहे थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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