शिशिरस्निग्धताराक्ष: समैक्षत समन्तत: ।
ऊचिवानिदमुर्वीश: सद: संहर्षयन्निव ॥ १९ ॥
अनुवाद
सभा के सदस्यों को प्रोत्साहन देने और उनकी ख़ुशी बढ़ाने के उद्देश्य से राजा पृथु ने ओस से भीगे हुए आकाश में तारों की तरह चमकते हुए अपनी आँखों से उन पर एक नज़र डाली। उसके बाद वह गंभीर स्वर में उनसे बोले।