श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 21: महाराज पृथु द्वारा उपदेश  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  4.21.19 
 
 
शिशिरस्‍निग्धताराक्ष: समैक्षत समन्तत: ।
ऊचिवानिदमुर्वीश: सद: संहर्षयन्निव ॥ १९ ॥
 
अनुवाद
 
  सभा के सदस्यों को प्रोत्साहन देने और उनकी ख़ुशी बढ़ाने के उद्देश्य से राजा पृथु ने ओस से भीगे हुए आकाश में तारों की तरह चमकते हुए अपनी आँखों से उन पर एक नज़र डाली। उसके बाद वह गंभीर स्वर में उनसे बोले।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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