श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 21: महाराज पृथु द्वारा उपदेश  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  4.21.10 
 
 
को न्वस्य कीर्तिं न श‍ृणोत्यभिज्ञो
यद्विक्रमोच्छिष्टमशेषभूपा: ।
लोका: सपाला उपजीवन्ति काम-
मद्यापि तन्मे वद कर्म शुद्धम् ॥ १० ॥
 
अनुवाद
 
  पृथु महाराज के कार्य इतने महान थे और उनके शासन की प्रणाली इतनी उदार थी कि आज भी सभी राजा और विभिन्न लोकों के देवता उनके पदचिह्नों पर चलते हैं। ऐसा कौन होगा जो उनके कीर्तिमान कार्यों को सुनना नहीं चाहेगा? उनके कार्य इतने पवित्र और शुभ हैं कि मैं उनके बारे में बार-बार सुनना चाहता हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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