श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 21: महाराज पृथु द्वारा उपदेश  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  4.21.1 
 
 
मैत्रेय उवाच
मौक्तिकै: कुसुमस्रग्भिर्दुकूलै: स्वर्णतोरणै: ।
महासुरभिभिर्धूपैर्मण्डितं तत्र तत्र वै ॥ १॥
 
अनुवाद
 
  महर्षि मैत्रेय ने विदुर से कहा: जब राजा ने अपनी नगरी में प्रवेश किया तो उसका स्वागत मोतियों, फूल मालाओं, सुंदर कपड़ों और सोने के द्वारों से सजी नगरी में किया गया एवं समूची नगरी सुगंधित धूप से महक उठी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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