श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 2: दक्ष द्वारा शिवजी को शाप  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  4.2.6 
 
 
उदतिष्ठन्सदस्यास्ते स्वधिष्ण्येभ्य: सहाग्नय: ।
ऋते विरिञ्चां शर्वं च तद्भासाक्षिप्तचेतस: ॥ ६ ॥
 
अनुवाद
 
  ब्रह्मा तथा शिवजी को छोड़कर, दक्ष के शरीर की कान्ति (तेज) से प्रभावित होकर उस सभा के सभी सदस्य तथा सभी अग्निदेव, उसके आदर में अपने स्थानों से उठकर खड़े हो गये।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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