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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति
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अध्याय 2: दक्ष द्वारा शिवजी को शाप
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श्लोक 5
श्लोक
4.2.5
तत्र प्रविष्टमृषयो दृष्ट्वार्कमिव रोचिषा ।
भ्राजमानं वितिमिरं कुर्वन्तं तन्महत्सद: ॥ ५ ॥
अनुवाद
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जब प्रजापतियों के नेता दक्ष सभा में आए, तो सूर्य के समान उनकी देह की चमक से पूरी सभा जगमगा उठी और सारे समागम में शामिल लोग उनकी उपस्थिति में तुच्छ लगने लगे।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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