श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 2: दक्ष द्वारा शिवजी को शाप  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  4.2.23 
 
 
बुद्ध्या पराभिध्यायिन्या विस्मृतात्मगति: पशु: ।
स्त्रीकाम: सोऽस्त्वतितरां दक्षो बस्तमुखोऽचिरात् ॥ २३ ॥
 
अनुवाद
 
  दक्ष ने शरीर को सर्वस्व मान लिया है। अतः चूँकि उसने विष्णु-पद अथवा विष्णु-गमन को भूल दिया है, और केवल यौन गतिविधियों में लिप्त रहता है, इसलिए उसे शीघ्र ही बकरी का मुख प्राप्त होगा।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.