श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 2: दक्ष द्वारा शिवजी को शाप  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  4.2.1 
 
 
विदुर उवाच
भवे शीलवतां श्रेष्ठे दक्षो दुहितृवत्सल: ।
विद्वेषमकरोत्कस्मादनाद‍ृत्यात्मजां सतीम् ॥ १ ॥
 
अनुवाद
 
  विदुर ने प्रश्न किया: दक्ष जो अपनी पुत्री से अति स्नेह करता था, सज्जनों में सर्वश्रेष्ठ भगवान शिव से ईर्ष्यालु क्यों था? उसने अपनी पुत्री सती का अपमान क्यों किया?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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