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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति
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अध्याय 19: राजा पृथु के एक सौ अश्वमेध यज्ञ
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श्लोक 8
श्लोक
4.19.8
ऊहु: सर्वरसान्नद्य: क्षीरदध्यन्नगोरसान् ।
तरवो भूरिवर्ष्माण: प्रासूयन्त मधुच्युत: ॥ ८ ॥
अनुवाद
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बहती हुई नदियाँ हर तरह के स्वाद—मीठा, खट्टा, चटपटा इत्यादि—देती थीं और बड़े-बड़े पेड़ खूब फल और शहद देते थे। गायें खूब हरी घास खाकर ढेर सारा दूध, दही, घी और दूसरी ज़रूरत की चीज़ें देती थीं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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