मैत्रेय उवाच
इत्थं स लोकगुरुणा समादिष्टो विशाम्पति: ।
तथा च कृत्वा वात्सल्यं मघोनापि च सन्दधे ॥ ३९ ॥
अनुवाद
महर्षि मैत्रेय ने आगे कहा: जब परम गुरु ब्रह्माजी ने राजा पृथु को इस प्रकार समझाया तो उन्होंने यज्ञ करने की अपनी इच्छा त्याग दी और राजा इंद्र के साथ मित्रतापूर्ण संबंध स्थापित कर लिए।