स त्वं विमृश्यास्य भवं प्रजापते
सङ्कल्पनं विश्वसृजां पिपीपृहि ।
ऐन्द्रीं च मायामुपधर्ममातरं
प्रचण्डपाखण्डपथं प्रभो जहि ॥ ३८ ॥
अनुवाद
हे प्रजा-पालक, भगवान विष्णु द्वारा प्रदत्त अपने अवतार के पीछे के उद्देश्य पर विचार करें। इंद्र द्वारा निर्मित अधार्मिक सिद्धांत असंख्य अवांछित धर्मों की जड़ हैं। इसलिए तुरंत इन पाखंडों का अंत कर दें।