श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 19: राजा पृथु के एक सौ अश्वमेध यज्ञ  »  श्लोक 35
 
 
श्लोक  4.19.35 
 
 
क्रतुर्विरमतामेष देवेषु दुरवग्रह: ।
धर्मव्यतिकरो यत्र पाखण्डैरिन्द्रनिर्मितै: ॥ ३५ ॥
 
अनुवाद
 
  ब्रह्माजी ने आगे कहा: ये यज्ञ बंद करो, क्योंकि इनकी वजह से इंद्र कई अधर्म कर रहा है। तुम्हें अच्छी तरह से पता होना चाहिए कि देवताओं में भी अनेक अवांछित इच्छाएँ होती हैं।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.