पृथुकीर्ते: पृथोर्भूयात्तर्ह्येकोनशतक्रतु: ।
अलं ते क्रतुभि: स्विष्टैर्यद्भवान्मोक्षधर्मवित् ॥ ३२ ॥
अनुवाद
ब्रह्माजी ने अंत में कहा, "महाराजा पृथु के निन्यानबे यज्ञ ही पर्याप्त हैं।" फिर वे महाराज पृथु की ओर मुड़े और उनसे बोले, "आप मोक्ष मार्ग से भलीभाँति परिचित हैं, तो आपको और अधिक यज्ञ करने से क्या प्राप्त होगा?"