न वध्यो भवतामिन्द्रो यद्यज्ञो भगवत्तनु: ।
यं जिघांसथ यज्ञेन यस्येष्टास्तनव: सुरा: ॥ ३० ॥
अनुवाद
ब्रह्माजी ने उन्हें संबोधित किया : हे याजको, तुम स्वर्ग के राजा इंद्र को नहीं मार सकते, यह कार्य तुम्हारा नहीं है। तुमको जान लेना चाहिए कि इंद्र भगवान की तरह ही हैं। वास्तव में वे भगवान के सबसे शक्तिशाली सहायक हैं। तुम इस यज्ञ के ज़रिए सभी देवताओं को प्रसन्न करना चाहते हो, लेकिन तुम्हें पता होना चाहिए कि ये सभी देवता स्वर्ग के राजा इंद्र के ही अंश हैं। तो फिर तुम इस महायज्ञ में उनका वध कैसे कर सकते हो?