श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 19: राजा पृथु के एक सौ अश्वमेध यज्ञ  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  4.19.3 
 
 
यत्र यज्ञपति: साक्षाद्भगवान् हरिरीश्वर: ।
अन्वभूयत सर्वात्मा सर्वलोकगुरु: प्रभु: ॥ ३ ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान विष्णु प्रत्येक प्राणी के हृदय में परमात्मा रूप में विराजमान रहते हैं और वो समस्त संसारों के मालिक तथा सभी यज्ञों के फल प्राप्त करते हैं। राजा पृथु द्वारा किये गए यज्ञों में वे स्वयं साक्षात् उपस्थित थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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