श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 19: राजा पृथु के एक सौ अश्वमेध यज्ञ  »  श्लोक 29
 
 
श्लोक  4.19.29 
 
 
इत्यामन्‍त्र्‍य क्रतुपतिं विदुरास्यर्त्विजो रुषा ।
स्रुग्घस्ताञ्जुह्वतोऽभ्येत्य स्वयम्भू: प्रत्यषेधत ॥ २९ ॥
 
अनुवाद
 
  हे विदुर, राजा को यह सलाह दे चुकने के बाद, यज्ञ में लगे पुरोहित क्रोध में आकर स्वर्ग के राजा इन्द्र को पुकारने लगे। जब वे आहुति डालने वाले ही थे, तभी वहाँ ब्रह्माजी प्रकट हुए और उन्होंने यज्ञ आरम्भ करने से मना कर दिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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