तदभिज्ञाय भगवान्पृथु: पृथुपराक्रम: ।
इन्द्राय कुपितो बाणमादत्तोद्यतकार्मुक: ॥ २६ ॥
अनुवाद
अत्यन्त पराक्रमी महाराज पृथु ने तुरन्त अपना धनुष-बाण लिया और वे इन्द्र को मारने के लिए सिद्ध हुए, क्योंकि इन्द्र ने इस प्रकार के अनियमित संन्यास का प्रचार-प्रसार किया था।