श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 19: राजा पृथु के एक सौ अश्वमेध यज्ञ  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  4.19.26 
 
 
तदभिज्ञाय भगवान्पृथु: पृथुपराक्रम: ।
इन्द्राय कुपितो बाणमादत्तोद्यतकार्मुक: ॥ २६ ॥
 
अनुवाद
 
  अत्यन्त पराक्रमी महाराज पृथु ने तुरन्त अपना धनुष-बाण लिया और वे इन्द्र को मारने के लिए सिद्ध हुए, क्योंकि इन्द्र ने इस प्रकार के अनियमित संन्यास का प्रचार-प्रसार किया था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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