अत्रिणा चोदितस्तस्मै सन्दधे विशिखं रुषा ।
सोऽश्वं रूपं च तद्धित्वा तस्थावन्तर्हित: स्वराट् ॥ २१ ॥
अनुवाद
जब अत्रि मुनि ने दोबारा आज्ञा दी, तो राजा पृथु का पुत्र बहुत क्रुद्ध हुआ और उसने अपने धनुष पर बाण रखा। यह देखकर राजा इन्द्र ने तुरंत संन्यासी के उस कपटी वेश को त्याग दिया और घोड़े को छोड़कर वह स्वयं अदृश्य हो गया।