श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति  »  अध्याय 19: राजा पृथु के एक सौ अश्वमेध यज्ञ  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  4.19.2 
 
 
तदभिप्रेत्य भगवान् कर्मातिशयमात्मन: ।
शतक्रतुर्न ममृषे पृथोर्यज्ञमहोत्सवम् ॥ २ ॥
 
अनुवाद
 
  जब इन्द्र ने यह देखा कि सकाम कर्मों में राजा पृथु उससे आगे निकलने जा रहा है, तो वह इससे सहन नहीं कर सका। वह पृथु के द्वारा कराये जा रहे यज्ञ-महोत्सव को रोकना चाहता था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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