वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् भागवतम
»
स्कन्ध 4: चतुर्थ आश्रम की उत्पत्ति
»
अध्याय 19: राजा पृथु के एक सौ अश्वमेध यज्ञ
»
श्लोक 18
श्लोक
4.19.18
तत्तस्य चाद्भुतं कर्म विचक्ष्य परमर्षय: ।
नामधेयं ददुस्तस्मै विजिताश्व इति प्रभो ॥ १८ ॥
अनुवाद
play_arrowpause
विदुर जी, जब ऋषियों ने राजा पृथु के पुत्र के आश्चर्यजनक युद्ध कौशल को देखा तो वे लोग उसका नाम विजिताश्व रखने के लिए राजी हुए।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.