सोऽश्वं रूपं च तद्धित्वा तस्मा अन्तर्हित: स्वराट् ।
वीर: स्वपशुमादाय पितुर्यज्ञमुपेयिवान् ॥ १७ ॥
अनुवाद
जब इन्द्र ने देखा कि पृथु का पुत्र उसका पीछा कर रहा है, तो उसने तुरंत ही अपना बनावटी रूप त्याग दिया और घोड़े को छोड़कर उस स्थान से अंतर्धान हो गया। महाराज पृथु का वीर पुत्र घोड़ा लेकर अपने पिता के यज्ञस्थल में लौट आया।